विदेशी भारतीय नागरिकता
सितंबर 2000 में भारत सरकार ने भारतीय डायस्पोरा पर एल एम सिंघवी की अध्यक्षता में एक उच्च स्तरीय समिति का गठन किया कमेटी को वैश्विक भारतीय डायस्पोरा के व्यापक अध्ययन करने तथा उनके साथ रचनात्मक संबंध बनाने के उपाय पर अनुशंसा देने का कार्य सौंपा। समिति ने अपनी रिपोर्ट जनवरी 2002 में 100 पर इसने नागरिकता दे 1995 में संशोधन की सिफारिश की ताकि भारतीय मूल के व्यक्ति को दोहरी नागरिकता प्रदान की जा सके लेकिन कुछ विशेष देश के रहने वालों को ही।
उसी अनुसार नागरिकता अधिनियम 2003 में विदेशी भारतीय नागरिकता का प्रावधान किया गया सोलन 10 देशों के पीआईओ यानी भारतीय मूल के व्यक्तियों के लिए पाकिस्तान और बांग्लादेश को छोड़कर इस अधिनियम ने पूर्व मुख्य अधिनियम के राष्ट्रमंडल नागरिकता से संबंधित सभी प्रावधान हटा दिए।बाद में नागरिकता अधिनियम 2005 में सभी देशों के भारतीय मूल के व्यक्ति को विदेशी भारतीय नागरिक प्रदान करने के प्रावधान किए गए जब तक कि उन्हें गुरुदेव स्थानीय कानूनों के अनुसार दोहरी नागरिकता प्रदान करते हो।
पुनः नागरिकता देने 2015 में मुख्य अधिनियम में विदेशी नागरिकता संबंधी प्रावधानों को संशोधन कर दिया इससे भारतीय विदेशी नागरिक तक कार्ड होल्डर के नाम से एक नई योजना शुरू की है जिसमें पीआईओ कार्ड स्कीम चौथा ओसीआई कार्ड स्कीम को मिला कर दिया गया है।
पीआईओ कार्ड स्कीम को 19/08/ 2002 में शुरू किया गया था। और उसके बाद ओसीआई कार्ड स्कीम 1 दिसंबर 2005 में शुरू की गई थी।दोनों स्कीम साथ साथ चल रहा है ठीक वैसे उसी आईस्क्रीम अधिक लोकप्रिय थी आवेदक इस कारण ब्रह्म के स्थिति में थे आवेदकों का भ्रम दूर करने उन्हें अधिक सुविधाएं प्रदान करने के लिए भारत सरकार ने पी आई हो तो था वह सीआई को मिलाकर एक कल स्क्रीन का चित्रण किया जिससे दोनों स्कीम के सकारात्मक पक्षों को शामिल किया गया इस प्रकार इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए नागरिकता अधिनियम 2015 अधिनियमित किया गया।